Lok Sabha Elections- इस वक्त पूरे देशभर में चुनाव का मौहाल है. देश का हर एक व्यक्ति जिसकी उम्र 18 साल के ऊपर है वह इस चुनाव में मतदान कर सकता है. ऐसे में जब आप वोट डालने पोलिंग बूथ में जाते हैं तब आपके बाएं हाथ की इंडेक्स फिंगर में एक बैंगनी रंग की स्याही लगायी जाती है. इस स्याही से पता चलता है की आपने मतदान किया है.
पर आपने क्या कभी सोचा है कि जो स्याही आपके उंगली में लगायी जाती है वो आखिर में छूटती क्यों नहीं है. आप उसे कितना भी साबुन से या किसी चीज से धोएं पर ये स्याही आपकी उंगली से छूटती नहीं है, बल्कि इसका रंग और गहरा होता जाता है. इस स्याही के पीछे का इतिहास और वैज्ञानिक कारण शायद आपको पता नहीं होगा. तो चलिए हम आपको इन्हीं सवालों के जवाबों से रूबरू करवाएंगे.
स्याही का इतिहास
चुनाव में इस्तेमाल होने वाली इस स्याही का इतिहास बहुत पुराना है. इसकी शुरुआत साल 1937 में मैसूर प्रांत के महाराज नलवाडी कृष्ण राजा वडयार ने की थी. उस वक्त कंपनी का नाम मैसूर लाक फैक्ट्री हुआ करता था जिसे आजादी के बाद मैसूर पेंट्स एंड वार्निश लिमिटेड (MVPL) नाम से जाना जाने लगा. यह कंपनी आजादी के बाद से कर्नाटक सरकार के अंतर्गत आती है.
चुनाव में स्याही की शुरुआत
इस स्याही का इस्तेमाल 1962 के लोकसभा चुनाव से होना शुरु हुआ था. इसके बाद से लेकर मौजूदा समय तक हर चुनाव(लोकसभा और विधानसभा) में इसी पक्की स्याही का इस्तेमाल होता है. चुनाव आयोग का मानना था कि इस स्याही के इस्तेमाल से कोई भी व्यक्ति या पार्टी मतदान का दुरुपयोग नहीं कर पाएगा.
स्याही के न छूटने का राज़
सिल्वर नाइट्रेट से बनी इस स्याही की सबसे अहम बात यह है कि इसका निशान तब तक नहीं जाता जब तक की उस स्थान पर नए सेल्स बन नहीं जाते. इसके अलावा कंपनी इस स्याही को बनाने में और भी कई केमिकल का इस्तेमाल करती है जिसकी जानकारी कंपनी किसी अन्य के साथ साझा नहीं कर सकती है.
कितनी है स्याही की कीमत
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि लोकसभा चुनावों(Lok Sabha Elections) के मतदान का परिणाम 4 जून को आएगा. आप चुनाव का रिजल्ट यहां क्लिक करके भी देख सकते हैं.
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